आमेर के राजा मानसिंह जी कछवाहा का वह इतिहास जो अंग्रेजों व मुगलों की चाटुकारिता करने वाले इतिहासकारों ने छुपाया, आज उनकी 406 वी पुण्यतिथि पर आपके सामने है। - KARNI SENA राजपूत करणी सेना NEWS OF RAJPUTANA

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Monday, July 6, 2020

आमेर के राजा मानसिंह जी कछवाहा का वह इतिहास जो अंग्रेजों व मुगलों की चाटुकारिता करने वाले इतिहासकारों ने छुपाया, आज उनकी 406 वी पुण्यतिथि पर आपके सामने है।

#सनातन_धर्म के रक्षक #आमेर_नरेश_राजा_मानसिंह जी कछवाहा जी की 406वी पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन।

अभी तक आपने इतिहास में यही पड़ा और सुना है कि राजा मानसिंह ने मुगलों का साथ दिया, जोधा-अकबर का विवाह या अकबर के सेनापति थे या महाराणा के खिलाफ युद्ध लड़ा जबकि वास्तविक सत्यता कुछ और है राजा मान सिंह जी ने सनातन धर्म की रक्षा करते हुए द्वारकाधीश मंदिर को मस्जिद से  फिर मंदिर बनाया और जगन्नाथ और सोमनाथ आदि मंदिरों को भी मुगलों से मुक्त कराया और पूजन अर्चन चालू करवाया साथ ही ऐसे हजारों मंदिर हैं  जो मुगलों के आक्रमण से खंडित व क्षतिग्रस्त हो चुके थे उनका पुनः जीर्णोद्धार करवाया ।

आइए आज विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।

पहली बात तो अकबर का साथ क्यों दिया  महाराणा का क्यों नहीं दिया? 
होकम,  कुछ राजपूत भाई राजा मानसिंह जी के बारे में गलत कमेंट कर रहे है। ऐसे लोगों के मुह लगना गलत है इनसे क्या बहस करे इन्होंने अंग्रेजों द्वारा बताया हुआ इतिहास ही पड़ा है
 ये लोग पोस्ट को पूरा पढ़ भी नही रहे हैं और राजा मान सिंह जी के बारे में गलत बोल रहे हैं कोई कह रहा है कि मुगलो के गुलाम थे कोई कह रहा महाराणा का साथ नहीं दिया तो इसका जवाब ये है कि राजपूत एक बार वचन दे दे तो उसी का साथ देता है महाभारत में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य और अर्जुन के सगे मामा ने दुर्योधन का साथ दिया केवल वचनबद्धता के कारण इसी प्रकार #राजामानसिंह जी ने भी अपना वचन निभाया लेकिन उसके पहले उन्होंने मुगलों के खिलाफ बिगुल बजाने के लिए सभी राजाओं के पास संदेश भेजा था लेकिन किसी ने भी तब आमेर का साथ नहीं दिया तब #कूटनीति और #चाणक्यनीति पर चलते उन्होंने यह कदम उठाया कि अकबर का साथ लिया अगर उस समय सभी राजपूत साथ दे देते तो इतिहास कुछ और होता लेकिन उस समय आमेर को अलग-थलग छोड़ दिया गया था और अगर अकबर आक्रमण करता तो आमेर की क्षत्राणियां तो जोहर कर लेती पर  राज्य की हजारों लाखों जो महिलाएं हैं उन सभी को मुगल व सेनापति उठा ले जाते हैं और क्या होता है वह हमने इतिहास में देखा है उन्होंने हजारों लाखों लड़कियों को बलात्कार होने से और धर्मांतरण से बचाया था उनकी इस कूटनीति का वर्णन उस समय के सभी दूसरे ग्रंथों में हैं उनकी सूझबूझ से लाखों स्त्रियों को मुगल होने से बचाया था पूरे राज्य की रक्षा की थी।*


 #द्वारकाधीश मंदिर सहित भारत के समस्त मंदिरों पर जो #पचरंगा झंडा लहराया जाता है वह राजा मान सिंह जी के ही #सनातन_धर्म की रक्षा का प्रतीक है। 

 इतिहास में किसी की हद से ज़्यादा तारीफ आपको दिखे तो समझ लीजिए, मामला गड़बड़ है, जैसे कल तक हम बापू चाचा को देश का तारणहार मानते थे, लेकिन सत्य वह नही था। इतिहास की यह गड़बड़ हर जगह ही है । असली योद्धाओं से तो आपका परिचय करवाया ही नही गया ।

●उदाहरण आपको मानसिंह कच्छवाह का देता हूँ - राजा मान ने उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर समेत 7000 मंदिरो से ज़्यादा मंदिरो की रक्षा की ।

● राजा मान ने हिंदुओ का मुक्ति स्थल गयाजी की न केवल रक्षा की, बल्कि वहां कई मंदिर बनवाये भी ।

●राजा मान ने एशिया की सबसे बड़ी शक्ति अफगान मूलवंश बंगाल सल्तनत का नाश किया

● राजा मान ने गुजरात को 300 साल बाद अफगान शासकों से आजादी दिलवाई

● राजा मान ने द्वारिकाधीश मंदिर को मस्जिद से पुनः मंदिर बनाया

● तुलसीदास का सरंक्षक राजा मान था । उन्ही के संरक्षण के कारण तुलसीदास रामायण लिखने में सफल हो पाए ।

● राजा मान ने काशी में हजारो मंदिरो का निर्माण करवाया

● राजा मान ने मीराबाई को पूरा सम्मान दिया, उनका भव्य मंदिर अपने ही राज्य में बनवाया

● राजा मान ने अफगानिस्तान को तबाह करके रख दिया, जहां से पिछले 500 वर्षों से आक्रमण हो रहे थे ।

● राजा मान ने ही पूर्वी UP से लेकर बिहार, झारखंड की रक्षा की

● राजा मान ने ही सोमनाथ मंदिर का दुबारा उद्धार किया था, हालांकि बाद में औरंगजेब ने इसे तोड़ डाला

●राजा मान ने ही हिंदुओ पर लगा हुआ 300 वर्ष से चल रहा जजिया कर हटवाया

● राजा मान ने ही मथुरा का उद्धार किया ।।

● राजा मान की प्रजा ही सबसे सुखी सुरक्षित  और सम्पन्न प्रजा थी ।।

लेकिन राजा मान के सम्मान में सबके मुँह में दही जम जाता है, क्यो की उन्होंने इतना काम किया, की पिछले 500 वर्षों में उनके जोड़ का योद्धा ओर धर्मरक्षक आज तक पैदा नही हुआ ।।

लेकिन जब मैने मानसिंह की तारीफ शुरू की, तो एक सज्जन आकर बोलने लगे, राजा मानसिंह के कारण हम अपने सभी राजाओ का सम्मान दाव पर नही लगा सकते, तो इसका अच्छा अर्थ मुझे समझ आया, सबका सम्मान बचाने के लिए राजा मानसिंह को बलि का बकरा बना दो, ओर उनका अपमान करो ? उनके अपमान से सबकी कमियां ढक जाएगी ...

जबकि हक़ीक़त यह है, की 1576 ईस्वी तक, जो हल्दीघाटी युद्धकाल समय था, उस समय तक मुगल तो मुट्ठीभर थे, भारत मे अफगान वंश के मुस्लिम कब्जा करके बैठे थे । मुगल तो यहां 100 साल भी ढंग से राज नही कर पाए ....

इतिहास का विश्लेषण कीजिये, ऐसा न हो कहीं हम कर्नल टॉड ओर चाटुकार इतिहासकारो का इतिहास पढ़कर भारत के वीर पुत्रो का अपमान कर रहे हो ....

कुछ अवर्णनीय ऐतिहासिक तथ्य जिनके बारे में इतिहास मोन है--

1: महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह हल्दीघाटी युद्ध के समय मुगलों के पक्ष में थे । युद्ध के दोरान वो लङे या नहीं?किसी भी इतिहासकार ने इस बारे में नहीं लिखा ।महाराणा प्रताप घायल अवस्था में युद्ध क्षेत्र से निकल कर जा रहे थे और दो मुगल सैनिक उनका पीछा कर रहे थे ।तब उन्हें बचाने के लिए अचानक शक्ति सिंह कहां से आ गये थे? उक्त घटना का इतिहास में कहीं वर्णन नहीं है ।  

 2: माना कि जौधा बाई राजा भारमल कछवाहा की पुत्री थी तो उसकी शादी अकबर के साथ साम्भर में क्यों संपन्न करवाई?आमेर किले में ब्याह रचाना चाहिए था ।                

 3: महाराणा के पद से जगमाल को हटा कर मेवाड़ के सामन्तों ने प्रताप को महाराणा घौषित किया ।जिससे नाराज होकर जगमाल मुगल सेवा में चला गया था ।युद्ध के लिए अकबर ने लङने के लिए तो भेजा होगा जिसका किसी भी इतिहासकार ने वर्णन नहीं किया ।

 4: कहते हैं कि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप ने हाथी पर बैठे राजा मान सिंह पर भाले का जोरदार वार किया ।मानसिंह हाथी के होदे में छुप गये थे ।भाले के प्रहार से होदा टूट गया था ।हाथी चिंगाङ कर भाग गया था तो फिर महाराणा प्रताप को सुरक्षित किसने जाने दिया गया? 

5: घायल चेतक के मरने पर शक्ति सिंह ने अपना घोङा प्रताप को दिया और स्वयं पैदल ही वापस मुगल शिविर में चले गये ।इस बात को सुनकर मुगल सेनापति ने शक्ति सिंह को कुछ नहीं कहा होगा?      

        इन सवालों से यही कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप के हर समय के क्रोध को राजा मान सिंह आमेर ने शान्ति के साथ सहन किया और इतना होते हुए भी प्रताप की  सुरक्षा करते रहे इसकी खबर अकबर को भी हो चली थी इसी लिए उसने राजा मान को कई सालों तक उसके महल में आने पर रोक लगा दी थी।  राजा मान सिंह जी आमेर का यह  गुण उनकी महानता को दर्शाता है । वो चाहते तो प्रताप को भी मार देते और मेवाड़ को भी लूट लेते । ऐसे महान् ह्रदय सम्राट राजा मान सिंह आमेर को उनके निर्वाण दिवस पर शत् शत् नमन् एवं हार्दिक श्रद्धांजली 🌺🌺🙏🙏

चित्तौड़ पर आमेर-आगरा द्वारा पहले आक्रमण (1568 ) का असली कारण क्या था ?

अकबर ने चित्तौड़ पर हुए इस आक्रमण में कुछ इतिहासकारो का मानना है, की लगभग 2 लाख लोगों की हत्या हुई थी, कर्नल टॉड में यह संख्या 35 हजार बताई है, लेकिन जो भी हो, यह युद्ध चित्तौड़ के विनाश की मुख्य बजह बना ।। 

#युद्ध_का_कारण

इस युद्ध मे जयपुर ने अकबर की मदद नही की थी, बल्कि अकबर ने कच्छवाहो की मदद की थी । भारमल के समय ही आमेर का जयपूर खानदान पठानो के सर्वनाश पर उतारू हो गया था, क्यो की अफगान पठानो ओर तुर्को ने भारत की 80% भूमि पर कब्जा जमा रखा था, हिंदुओ का बड़ी तेज गति से धर्मान्तरण हो रहा था, अब पठानो को किसी भी तरह रौकने की जरूरत थी। 

कच्छवाहो ने नारनोल के हाजी खान पठान को घेरा, उसके बाद बाज बहादुर का नम्बर था ।। बाजबहादुर मांडू का सुल्तान था, मांडू के इन सुल्तानों ने मांडू की क्या दुर्गति की है, वहां के हिंदुओं मंदिरो ओर महलों का मस्जिदों में परिवर्तन आज भी चीख चीख कर इन अफगान सुल्तानों की क्रुरलीला को बखान करता है । मांडू के सुल्तान से कच्छवाहो की सीधी दुश्मनी थी, लेकिन महाराणा उदयसिंह ने चित्तौड़ के मजबूत किले में बाजबहादुर को शरण दे दी ।। कच्छवाहो ओर अकबर का चितोड़ पर आक्रमण करने का मुख्यकारण कट्टर इस्लामी धर्मान्ध  #बाजबहादुर को शरण देना ही था । 

कच्छवाह ओर आगरा की संयुक्त सेना को चित्तौड़ को जीतने में 6 महीने लगाने पड़े । लेकिन यहां जयमलजी ओर पत्ताजी ने जो बहादुरी दिखाई थी, उससे प्रभावित हुए बिना कच्छवाहे ओर आगरा वाले भी नही रहें, आगरा के किले में पत्ताजी ओर जयमलजी की मूर्तियां लगवाई गयी ।।

मुझे यह पोस्ट इसीलिए लिखनी पड़ी , क्यो की कल किसी पेज पर भगवानदासजी कच्छवाह को गालिया दी जा रही थी, की उसने चित्तौड़ में ऐसा नरसंहार क्यो करवाया ,, उनसे मैं यह पुछना चाहता हूं, क्या मांडू के सुल्तान गोड़ ब्राह्मण थे, जो उन्हें शरण दी गयी ?? क्या मांडू के सुल्तानों ने हिंदुओ का कत्लेआम नही करवाया था ? पूरे मांडू से लेकर मालवा ही क्या, पूरे भारत को इन अफगानों में तहस नहस कर डाला, उनसे किसी भी तरह की मित्रता ओर सहयोग का क्या मतलब था ??

फिर भी में चित्तौड़ को बाजबहादुर को शरण देने का दोषी नही मानता, क्यो की उस समय चित्तौड़ चारो तरफ से पठानो से घिरा पड़ा था, कच्छवाहै और मुगल उस समय मुट्ठीभर थे, उनकी विजय की आशा किसी को नही थी, इसीलिए उन्होंने अफगानों से मित्रता ही उचित समझी ।

 लेकिन #रघुकुल_तिलक #इक्ष्वाकु_वंशी  भारत के धर्मध्वज ब्राह्मणो ओर समस्त मनुष्यजाति के रक्षक कुश के वंसज पूरे भारत से पठानो का नामोनिशान खत्म करने पर तुले थे, ओर उनके इस मार्ग में जो भी आ रहा था, वह अपने विनाश को ही निमंत्रण दे रहा था ।

यह जो आधी अधूरी बात लिखकर लोगो को गुमराह करते है, उन्हें अगर इतिहास ही लिखना है, तो पूरा लिखना चाहिए , अर्धसत्य नही लिखना चाहिए ...

#शिवाजी_संभाजी__महाराज व आमेर कछवाहो के बीच आखिर क्या रिश्ता था! 
जो मिर्जा राजा जयसिंह जी के पुत्र कुं रामसिंह  ने शिवाजी संभाजी को #क्रूर_मुगल_बादशाह__ओरंगजेब_के_चगुंल_से_छुडाकर____मुक्त किया था!
, #इतना_शेयर_करें_की इतिहास की यह सच्चाई देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुंच! ओर इतिहास से वाकिफ होकर गर्व व गौरान्वित महसूस कर!!👌👌
【१】क्या आप जानतें हे, #क्षत्रिय__शिरोमणि___सिसोदिया__राजपूत_वंशज________शिवाजी__संभाजी__महाराज_को_ओरंगजेब के चगुंल से आजाद करवाने वालें, ओर जिनके परिचय से आजतक देश का प्रत्येक नागरिक अंजान है!
 वह कोई और नहीं सूर्यवंशी क्षत्रिय आमेर कछवाहा #मिर्जा_राजा_जयसिंह_जी_का_पुत्र_कुं_____रामसिंह जी ही थें!!

इतिहास के बहुत से पहलू है, जिनसे आप ओर हम सभी अनजान हैं ओर #काग्रेस_वामपंथियों_ओर_विदेशी____लेखको_का_______मनगढ़ंत__जहर__हम_70_सालों_से__आजतक हम पढाया जा रहा है, हमनें कभी सत्य प्रमाणिक इतिहास को जानने की कोशिश नहीं की! 
ओर राजनेतिज्ञ महत्काशांओ से प्ररित मनोवृत्तियों के चंगुल मे आकर इतिहास के महान पुरुषों पर कुछ अज्ञानी अनैतिक गलत टिप्पणी बोल देतें है!
जबकि आमेर क्षत्रिय कछवाहो ने प्रत्येक राजा महाराजाओं व प्रजा देश धर्म के लिए अनेक बलिदान दियें! हा यह सत्य है कि मुगलों से इन्होंने संन्धि की है!
पर कभी मुगलो के आगें झुके नहीं, समय समय पर विध्दोह भी किया है!उसका एक छोटा सा उदाहरण यह भी है !!
 
#आप_सभी_इस_विडियों_को_पूरा_सुन_ओर_ज्यादा_से_ज्यादा_शेयर_करें__इसमे_प्रमुख_इतिहासकार_सिसोदिया वंशज_ओमकार सिहंजी लाखावत व जयपुर कछवाहा आमेर वंशज राजकुमारी दिया कुमारी की खास आवाज!!🏳️‍🌈🏳️‍🌈🚩🚩🚩

देश के विभिन्न क्षत्रिय राजपूत राजाओं के साथ साथ आमेर कछवाहो ने देश धर्म ओर सनातन परंपरा को जिवित रखा, सिधे तोर पर जाने तो आमेर कछवाहो के कारण ही हम ओर आप हिन्दू है!
आज सनातन धर्म से आज आप ओर हम सभी जुडे हुए हैं! कुछ अन्य महत्वपूर्ण भूमिका जिससे देश के नागरिक आज भी अनजान है!
【२】 ,#अफगान_लूटरें_अब्दाली_को मानपुर युध्द मे परास्त करने वालें सूर्यवंशी क्षत्रिय आमेर कछवाहा ईश्वरीसिहंजी ही थें!!

【३】,हल्दीघाटी के युध्द करके भी उसी युद्ध में महाराणा प्रताप जी का सहयोग करनेवाले भी सूर्यवंशी क्षत्रिय आमेर कछवाहा मानसिहंजी ही थें!!

【४】उडिसा का जगन्नाथपुरी मंदिरों से पठानो के झुण्डों का सफाया कर उस पर पंचंरगा ध्वज लहराने वालें भीं सूर्यवंशी क्षत्रिय आमेर कछवाहा मानसिहंजी ही थें!!

【५】एक दिन मे एक हजार मंदिरों का निर्माण करनेवाले ओर काशी बनारस, वृदांवन हर की पोडी इत्यादि जितनी भी धर्मनगरी है, उन्हें वापस निर्माण करके धर्मनायक की भूमिका निभाने वाले सनातन धर्म की कमजोर रीढ़ को वापस सुदृढ़ करनेवाले सूर्यवंशी क्षत्रिय आमेर कछवाहा मानसिहंजी ही थें!!

 【५】काबुल ,गजनी,अरब देशों में अपनें तलवार के बल ओर पराक्रम से तुर्क यवन नस्लों को अपने पेरों तल रोधनें वालें इस्लामिक देशों पर हूकूमत करने वालें कोई ओर नहीं सूर्यवंशी क्षत्रिय आमेर कछवाहा मानसिहंजी ही थें!

#मात_सुणावै_बाळगां___खौफ़नाक रण-गाथ। 
काबुल भूली नह अजै, ओ खांडो, ऐ हाथ।। 
काबुल की भूमि अभी तक यहाँ के वीरों द्वारा किए गए प्रचण्ड खड्ग -प्रहार को नहीं भूल सकी है उन प्रहारों की भयोत्पादक गाथाओं को सुनाकर माताएं बालकों को आज भी डराकर सुलाती है !!

सो जा मुन्ना सो जा वर्ना मान आ जाऐगा कयामत का खुदा(अल्लाह) आ जाऐगा!!
आज भी मां लोरियों से नहीं राजामानसिहंजी आमेर के भय से सुलाती है!!

#किसी_ने_इन्हें_अल्लाह_माना_तो_किसी_ने_कयामत____का_खुदा__इसलिए_तो_आज_भी_इस्लामिक देशों मे  कछवाहो के नाम का कहर बरकरार है!
आमेर कछवाहो की उपलब्धिया के बहुत से उदाहरण है जजिनकों जितना भी जाने उतना ही कम है!!
🚩🚩🚩🚩यतोःधर्मस्तःतोःजयः🚩🚩🚩🚩🚩

🏳️‍🌈【 जयपुर में भी महिलाओं ने किया था जौहर 】          

■ चित्तौड़ के किले की तरह जयपुर के जनाना महलों की महिलाओं ने भी मराठों से बचने के लिए जनानी ड्योढ़ी परिसर में बारूद बिछाकर जौहर कर लिया था ! मराठा मल्हार राव होल्कर कि अगुवाई में जयपुर के घेराव के बाद जयपुर के महाराजा 【 ईश्वरीसिंह कच्छवाह 】ने महल में विष खाकर प्राण त्याग दिए थे ! तब मल्हारराव होल्कर के बेटे खंडेराव होल्कर ने ड्योढ़ी के महलों कि सुन्दर स्त्रियों को महलों से उठाकर लाने के लिए सैनिकों को निर्देश दिए ! इस बात कि सूचना जब जनाना महलों तक पहुंची तब रानियों ने सेविकाओं के साथ शस्त्र उठा मुकाबला करने साथ जौहर करने की ठान ली !

■  ड्योढ़ी हाकिम ने प्रेम सिंह गोगावत को बताया कि मराठों के आने की सूचना मिलते पर 11 गणिकाओं परदायतों ने बारूद बिछा कर जौहर कर लिया है ! शेष बची महिलाओं ने ड्योढ़ी सहित खुद को उडाने के इरादे से एक महल में बारूद बिछा रखीं हैं !

■ प्रसिद्ध इतिहासकार सूर्यमल्ल मिश्रण ने वंश भास्कर में लिखा है ! प्रेमसिंह गोगावत और वकील कान्ह बनिया ने होल्कर के मित्र बूंदी के राजा उन्मेदसिंह हाड़ा ने शिविर में जाकर बताया कि  11 महिलाओं ने जौहर कर लिया है !

■ तब उन्मेदसिंह हाला होल्कर के शिविर में मूछों पर  ताव देते हुए क्रोध भरे लहजे में पहुंचा और कहा कि तुम्हारे पुत्र के एक आनीति की बात सुनी है ! बेटे को समझा दो  नहीं तो बूंदी की सेना तुम्हारी दूश्मन बन जाएगी !

■ होल्कर ने कहा महाराजा ईश्वरीसिंह कि विषपान से मृत्यु के बाद तुम्हारे बेटे ने जनाना खाने की महिलाओं को अपने पास बुलाने का आदेश दिया है ऐसे में 11 महिलाओं ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए जौहर भी कर लिया है ! इस समय सभी महिलाओं ने महल में बारूद बिछाकर आग में अपना शरीर होम कर देने का निर्णय कर रखा है !

■ उन्मेदसिंह होल्कर ने कहा कि ड्योढ़ी कि तरफ आँख उठाकर भी देखा तो बुरे परिणाम भुगतने पडेंगे ! इस धमकी के बाद होल्कर ने अपने बेटे को धमकाया और जनानी ड्योढ़ी में नहीं जाने और जयपुर में हमला नहीं करने का निर्णय सुनाया !

■ वंश भास्कर के अनुसार जयपुर के महाराजा ईश्वरी सिंह ने युद्ध में तीन बार मराठों को हरा दिया था ! इस युद्ध में ईश्वरी सिंह का प्रधानमंत्री हरगोविंद नाटाणी मराठों से मिल गया था ! महाराजा ईश्वरीय सिंह नाटाणी के धोखे को सहन नहीं कर सके थे ! यही कारण था कि उन्होंने विषपान करके आत्महत्या लिया !

  जय भवानी
जय राजपूताना         【  कुशवाहा क्षत्राणी 】

 #मुगल_आमेर_के_अधीन_थे - आमेर मुगलो के नही

हमारे इतिहासकार शायद इतनी गहराई तक नही जा पाए, इतनी गहराई तक वहीं जा सकता है, जो इतिहास पढ़ता नही, बल्कि इतिहास में जीता है --

इन दोनों ध्वज का समझने का प्रयास करें 

चित्र 1 - मुगलो का अकबरकालीन ध्वज
चित्र 2 - बाबर का ध्वज ( उज्बेकिस्तान का ध्वज )

आपने मुगलो के अकबरकालीन ध्वज में एक बात गौर की ? इसमें सूर्य को उदय होता दिखाया गया है । जबकि उज्बेकिस्तान के ध्वज में सूर्य नही, चन्द्रमा है ।।

इस्लाम सूर्य की पूजा को हराम मानता है -- मुसलमान सूर्य नमस्कार भी इसीलिए नही करते, क्यो की सूरज की पूजा उनमें हराम है ।। मुसलमानो में हर कार्य चन्द्रमा को देखकर होता है, उनका कोई भी ऐसा त्योहार नही, जो सूर्य देवता को समर्पित हो ....

आप किसी भी ढंग के मौलवी से इस बात का पता कर सकते है - सूर्यपूजा इस्लाम मे हराम है । हदीस सूर्यपूजा के बारे में क्या कहती है, वह आप खुद पढ़ लीजिये --

Saheeh al-Bukhaari (581) and Saheeh Muslim (831) that it is forbidden to pray after Fajr prayer until the sun has risen above the horizon to the height of a spear, at the time of noon when the sun is at its zenith,  and after the time of 'Asr until the sun is fully set.  The Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) told us that the sun rises and sets between the two horns of a devil, at which time the kuffaar prostrate to it.

 

इस्लामिक ग्रँथ सूर्य की किसी भी तरह पूजा , ओर प्रतीकों को हराम मानते है । और किसी भी राजवंश का ध्वज, उसके लिए हमेशा पूजनीय होता है ।

लेकिन अकबर के बाद मुगलो के ध्वज पर सूर्य है । यह सूर्य वास्तव में अकबर का नही, बल्कि आमेर राजवंश का है, क्यो की सूर्यवंश ( विष्णु -मनु महाराज ) की गद्दी आमेर राजवंश के पास ही है । रामजी की प्रमुख गद्दी भी कच्छवाहो के पास ही है ।।

हरे रंग पर पिला सूर्य इस बात का साफ साफ प्रतीक है, की आमेर मुगलो के अधीन नही, बल्कि मुगल आमेर के अधीन थे ।।

मुगल मंगोल नस्ल है । मंगोल का सम्बन्ध मङ्गल से है । ज्योतिष में  सूर्य का सेनापति मङ्गल है ।।

ज्ञानीजन मेरी बात समझ जाएंगे ....

बाबर के पुत्र हिन्दाल से #कछवाहो का युद्ध 🚩 

#रायमलजी_ओर__आमेर_कछवाहो की सयुक्त जीत🏳️‍🌈
मुगल हिन्दाल का शिखरगढ़ पर आक्रमण:-
26 दिसम्बर 1530 को बाबर की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र हुमायु बादशाह हुआ।उसके भाई हिन्दाल को मेवात की जागीरी मिली।
वि. स. 1590 ई. 1533 में उसने शेखावतों पर के प्रदेश पर आक्रमण कर दिया और शिखरगढ को घेर लिया,लेकिन रायमल जी को  पहले से ही युद्ध का भान  हो गया था अतः उन्होंने इससे पूर्व सभी तरह की सामरिक सामग्री एकत्रित कर ली थी।
उधर शिखरगढ़ पर आक्रमण का सुन आमेर नरेश  पूर्णमल जी भी रायमलजी की सहायतार्थ आ गए। रायमल जी और आमेर की सयुक्त सेना हो जाने से रायमल जी की सैन्य शक्ति हिन्दाल की सेना के समान हो गयी थी, हिन्दाल ओर रायमलजी की सेना के बीच डटकर मुकाबला हुआ।
#आमेर_के_राजा_पूर्णमल__जी माघ सुदि वि. स. 1590 के दिन काम आये।हिन्दाल की सेना को भी भारी नुकसान हुआ और वो रायमल जी और आमेर की सेना के सामने टिक नही पाया और भाग खड़ा हुआ।इस युद्ध मे रायमलजी की सेना को भी भारी नुकसान हुआ लेकिन इस युद्ध मे विजय श्री रायमलजी के हाथ लगी।

पांच कबिला अफगाणी,
तौपां तणी पिछाण।
जोखम हुसी आंवत रा,
लीन्हा मान पिछाण।।
खरतर खांडो मान रो,
कीधो खळकट जाय।
पांच कबिला खैगाळ्या,
हिंदवण लिधा बचाय।।
अफगान मे पांच कबिले तौपें उनकी पहचान थी 
आने वाले समय में ये कबिले हमारे लिए खतरा साबित होगें ऐसा मान सिह आमेर ने पहचान लिया था ।।
राजा मान सिंह ने तीक्ष्ण 
खांडे से वहां जाकर उनका संहार किया ।
पांच ही कबिलों का खात्मा (संहार)करके समस्त सनातन धर्म को बचा लिया ।।

✍️: सनातन धर्मध्वज रक्षक अघोषित सम्राट महाराजा मान सिंह जी कछवाहा की पुण्यतिथि पर उनको विराज शेखावत कृत शब्दाजंलि-

आज सनातन आखतो,
मान बिना कुण म्हेर,
डीके ऊभो डीकरो,
आंख पसार आमेर।।
ऊंचो जा आभै अड़े,
लड़े राखण लाज,
दिखे नही दूजो धरा
मान सिंह महाराज।।
जाय अड़ियो जंग में,
दंग देख दुनियाण,
अंग अंग काटे अलग,
बिरदुं "मान" बखाण।।
काबुल तक कीधो जिको,
निज तलवार निशान,
चाख समंदर चटकियो,
महिपत राजा "मान"।।
कुँवर विराज शेखावत
खड़काविया खांडा खड़ग,
रुक्यो न जिणरो रत्थ,
भूलिया निज वंश रा,
कीरति अर कत्थ।।
नरपति सो धर पर नही,
राजा सेवक राज,
सुरपति सो "मान सी",
महीपति महाराज।।
त्रोडिया मन्दिर तुरक,
जोड़ियां नृप जोय,
छोड़िया न "मान सी",
कुबध कबीला कोय।।

महिपत राजा मान, शान थूं धरम सनातन,
महिपत राजा मान, पार जा नीर पुरातन,
महिपत राजा मान,चाव घण राखे चारण
महिपत राजा मान,करे सम्मान वधारण,
क्रोड़ पसावां मुकिया,कवियां चारण राव री,
जहां घण नृप झुकिया,लखे विरद आमेर री।।

3 comments:

  1. Jay rajputana
    Jay ma bhavani hum jante hai ki amer ke raja mahan the par doosre rajputo ke upar lanchan nhi lagana chahiye kyonki sabki apni apni majbooriya v thi

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  2. जय सियाराम
    मैं अर्जुन तितौरिया खटीक जाति से हूं
    अपितु में जातिवाद को नहीं मानता किंतु राजपूत,ब्रह्मण में यह जातिवाद अधिक दिखाई पड़ता है।
    राजपूत निसंदेह प्राकृमी योद्धा थे ब्रह्मण भी वेदों पुराणों आदि के माध्यम से धार्मिक कार्यों को करते थे उनको सनातन धर्म का शिक्षक वर्ग कहा जा सकता है।
    वैश्य वर्ग व्यवसाई वर्ग था,शुद्र का कार्य शिल्प,सहित अन्य कार्य थे।
    किंतु क्या करणी सेना मात्र राजपूतों के लिए आवाज उठाती है?
    क्या इसको केवल राजपूत वर्ग द्वारा स्थापित उनकी निजी संस्था माना जाए?
    क्या सम्पूर्ण वर्ग सनातन धर्म के प्रति आप निष्ठावान हैं?
    क्या मेरे लिए आप आवाज उठा सकते हैं?
    क्या क्षत्रिय का अर्थ राजपूत ही होता है?
    उत्तर देंगे तो बड़ी कृपा होगी

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    1. में रावणा राजपूत से हूँ और मै इन लोगो से खासतोर से जो खुद को असली राजपूत और उच्च राजपूत बताते है उनसे यही कहना चाहता हु कि इन्होने अंग्रेजो और मुघलों का गु मूत्र खाया था

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