नरसिंहगढ़ रियासत के वीर सपूत कुँवर चैनसिंह जी ने मात्र २३ वर्ष की उम्र में सन 1857 की क्रांति से ३3 वर्ष पहले ही सन 1824 को भारत की स्वाधीनता के लिये शंखनाद कर दिया था।
सिहोर स्थित छत्री
नरसिंहगढ़ स्टेट केजो उनके साथ पधारे थे वे सभी भी वीरता से लड़ते-लड़ते उनके साथ शहीद हो गये। (सिर्फ नरसिंहगढ़ स्टेट के ठिकाने व जागीरदार इस युद्ध में उनके साथ थे अगर आस पास के सभी राज्यों के ठिकानेदार व स्टेट भी साथ हो जाती परिणाम कुछ और होता।)
सिहोर स्थित छत्री |
नरसिंहगढ़ स्टेट केजो उनके साथ पधारे थे वे सभी भी वीरता से लड़ते-लड़ते उनके साथ शहीद हो गये। (सिर्फ नरसिंहगढ़ स्टेट के ठिकाने व जागीरदार इस युद्ध में उनके साथ थे अगर आस पास के सभी राज्यों के ठिकानेदार व स्टेट भी साथ हो जाती परिणाम कुछ और होता।)
कुवरानी राजावत जी के द्वारा बनाया गया मंदिर |
कुँवर चैनसिंह सिंह जी की पत्नी कुवरानी जी (राजावत जी ठिकाना मुवालिया ) तक जब यह समाचार पंहुचा तो उन्होंने उसी दिन से अन्न को त्याग दिया एवं उस दिन के बाद से केवल पेड़-पोधो के पत्तो पर फलाहार कर जीवन व्यतीत किया। कुंवरानी राजावत जी ने कुँवर चैनसिंह सिंह जी की याद में परशुराम सागर के पास एक मंदिर भी बनवाया जिसे हम कुंवरानी जी के मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर की खासियत यह है की इन प्रतिमाओ में भगवान का स्वरुप मुछों में है अर्थात कुंवरानी जी भगवान की इन मुछों वाली प्रतिमाओ में कुँवर चैनसिंह सिंह जी का प्रतिबिम्ब देखकर उसी रूप में उनकी आराधना करती थी। इस युद्ध की तैयारी कुँवर चैन सिंह जी ने पहले ही कर ली थी उन्होंने अपने सभी विश्वासपात्र ठिकानेदार ,जागीरदार और साथियो को अपने प्राणो की आहुति देने को तैयार रहने को कहा जो वीर है वे ही साथ चलें जिनके वंशज नहीं थे उन्हें बिच में ही वापस लौटने को कहा जिसके कारण बहुत से ठिकानेदार बिच से ही लोट आये, क्युकी कुंवर साब को अच्छी तरह आभास था की हम सब वीरगति को प्राप्त होने वाले है।
कुंवर चैन सिंह जी की छत्री नरसिंहगढ़ छारबाग़ |
ब्रिटिश काल में अंग्रेजो छावनी सीहोर थी जो की आज मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 35 km पश्चिम में भोपाल-इंदौर रोड पर स्थित है। अग्रेजो की इस छावनी पर भरपूर सैनिक और गोला बारूद व सशत्र थे। वहां पर पहुंचने पर अग्रेजो द्वारा युद्ध की चेतावनी और कार्यवाही करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए कुंवर सा ने मंगल जमादार से कहा कि जाओ तुम्हारे साहब लोगों से बोल दो हम उनकी कोई बात नहीं मानेंगे, वो हमें आदेश देने वाले कौन होते हैं हम अपने राज्य के स्वतंत्र राजा है और हम युद्ध के लिये तैयार हैं । जमादार द्वारा कु. चैन सिंह से यह विनती करने पर कि मैं अदना सा अंग्रेजी हुकूमत का मुलाजिम आपकी बात साहब लोगों के सामने नहीं बोल पाऊंगा, आप अपने किसी विश्वास पात्र को भेजकर अपने निर्णय से अंग्रेज साहबों को अवगत करा दें । इस पर कु.चैन सिंह द्वारा अपने विश्वास पात्र लाला भागीरथ को भेज अपने निर्णय से मेंडाक और जानसन को अवगत करा देने के पश्चात अंग्रेजी फौज द्वार कैम्प पर आक्रमण कर दिया गया । प्रतिउत्तर में कु.चैन सिंह और उनके साथ सभी ठिकाने के जागीरदार व राजपूत सरदार व साथी हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ सहित विभिन्न जाति और धर्म के लोगों ने अंग्रेजी फौज का वीरतापूर्वक सामना कर अपने प्राणों की आहूति दे कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह कर दिया।
यह थे नरसिंहगढ़ स्टेट के इस सशस्त्र विद्रोह के शहीद
ब्रिटिश काल में अंग्रेजो छावनी सीहोर थी जो की आज मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 35 km पश्चिम में भोपाल-इंदौर रोड पर स्थित है। अग्रेजो की इस छावनी पर भरपूर सैनिक और गोला बारूद व सशत्र थे। वहां पर पहुंचने पर अग्रेजो द्वारा युद्ध की चेतावनी और कार्यवाही करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए कुंवर सा ने मंगल जमादार से कहा कि जाओ तुम्हारे साहब लोगों से बोल दो हम उनकी कोई बात नहीं मानेंगे, वो हमें आदेश देने वाले कौन होते हैं हम अपने राज्य के स्वतंत्र राजा है और हम युद्ध के लिये तैयार हैं । जमादार द्वारा कु. चैन सिंह से यह विनती करने पर कि मैं अदना सा अंग्रेजी हुकूमत का मुलाजिम आपकी बात साहब लोगों के सामने नहीं बोल पाऊंगा, आप अपने किसी विश्वास पात्र को भेजकर अपने निर्णय से अंग्रेज साहबों को अवगत करा दें । इस पर कु.चैन सिंह द्वारा अपने विश्वास पात्र लाला भागीरथ को भेज अपने निर्णय से मेंडाक और जानसन को अवगत करा देने के पश्चात अंग्रेजी फौज द्वार कैम्प पर आक्रमण कर दिया गया । प्रतिउत्तर में कु.चैन सिंह और उनके साथ सभी ठिकाने के जागीरदार व राजपूत सरदार व साथी हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ सहित विभिन्न जाति और धर्म के लोगों ने अंग्रेजी फौज का वीरतापूर्वक सामना कर अपने प्राणों की आहूति दे कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह कर दिया।
यह थे नरसिंहगढ़ स्टेट के इस सशस्त्र विद्रोह के शहीद
यह थे इस सशस्त्र विद्रोह के शहीद
- वीर शहीद कुँवर साहेब चैनसिंह जी नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज।
- ससुरसाब शिवनाथ सिंह जी राजावत झिलाय ठि.मुवालिया जागीर नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा. रूगनाथ सिंह राजावत नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.खुमान सिंह जी (दीवान) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.अखे सिंहचंद्रावत जी (ठि.कड़िया चन्द्रावत ) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- रतन सिंह (राव जी) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- गोपाल सिंह (राव जी) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- पठार उजीर खाँ,नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- बख्तावर सिंह नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- गुसाई चिमनगिरि नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- जमादार पैडियो नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.मोहन सिंह राठौड़ नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.तरवर सिंह जी
- ठा.सा.प्रताप सिंह गौड़ ,
- बाबा सुखराम दास
- बदन सिंह नायक,
- लक्ष्मण सिंह,
- बखतो नाई
- ठा.सा.ईश्वर सिंह,
- ठा.सा.मौकम सिंह सगतावत ,
- फौजदार खलील खाँ
- ठा.सा.हमीर सिंह
- जमादार सुभान,
- ठा.सा.श्याम सिंह,
- बैरो रूस्तम
- ठा.सा.बखतावर सिंह सगतावत (नापानेरा)
- चोपदार देवो ,
- ठा.सा.उमेद सिंह सोलंकी,
- मायाराम बनिया
- ठा.सा.प्यार सिंह सोलंकी ,
- ठा.सा.केशरी सिंह
- ठा.सा.कौक सिंह,
- ठा.सा.मोती सिंह
- ठा.सा.गज सिंह सींदल ,
- दईया गुमान सिंह ...
- हिम्मत खाँ ,बहादुर खाँ नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से
इनके सहित 43 के लगभग वीर राजपूत योद्धा शहीद हुए थे इनके अलावा उनके सेवक भी थे। गागोर राघौगढ़ राजा धारू जी खीची के उत्तराधिकारी गोपाल सिंह एवं जालम सिंह सहित 40 के लगभग घायल हुऐ थे।
- वीर शहीद कुँवर साहेब चैनसिंह जी नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज।
- ससुरसाब शिवनाथ सिंह जी राजावत झिलाय ठि.मुवालिया जागीर नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा. रूगनाथ सिंह राजावत नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.खुमान सिंह जी (दीवान) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.अखे सिंहचंद्रावत जी (ठि.कड़िया चन्द्रावत ) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- रतन सिंह (राव जी) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- गोपाल सिंह (राव जी) नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- पठार उजीर खाँ,नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- बख्तावर सिंह नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- गुसाई चिमनगिरि नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- जमादार पैडियो नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.मोहन सिंह राठौड़ नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से।
- ठा.सा.तरवर सिंह जी
- ठा.सा.प्रताप सिंह गौड़ ,
- बाबा सुखराम दास
- बदन सिंह नायक,
- लक्ष्मण सिंह,
- बखतो नाई
- ठा.सा.ईश्वर सिंह,
- ठा.सा.मौकम सिंह सगतावत ,
- फौजदार खलील खाँ
- ठा.सा.हमीर सिंह
- जमादार सुभान,
- ठा.सा.श्याम सिंह,
- बैरो रूस्तम
- ठा.सा.बखतावर सिंह सगतावत (नापानेरा)
- चोपदार देवो ,
- ठा.सा.उमेद सिंह सोलंकी,
- मायाराम बनिया
- ठा.सा.प्यार सिंह सोलंकी ,
- ठा.सा.केशरी सिंह
- ठा.सा.कौक सिंह,
- ठा.सा.मोती सिंह
- ठा.सा.गज सिंह सींदल ,
- दईया गुमान सिंह ...
- हिम्मत खाँ ,बहादुर खाँ नरसिंहगढ़स्टेट कि ओर से
---------भारत सरकार ने भी माना शहीद---------
भारत सरकार ने नरसिंहगढ़ एवं सीहोर दोनों स्थानों पर कुँवर चैन सिंह जी के स्मारक बनवाये है !
भारत शासन द्वारा कुँवर चैन सिंह जी को ८ अगस्त १९८७ को शहीदो की माटी संग्रह कार्यक्रम में सम्मलित किया था !
तीनो वीरो की माटी को दिल्ली शहीद स्मारक ले जाकर राष्ट्रीय शहीद घोषित किया गया !
कुँवर चैन सिंहजी से जुड़े इतिहास को कक्षा १०वी के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है !
(पश्चिम बंगाल के स्कूलो में आज भी पदाया जाता है)
गार्ड ऑफ़ ऑनर
मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से सीहोर स्थित कुंवर चैन सिंह की छतरी पर गार्ड ऑफ ऑनर प्रारम्भ किया है।
प्रत्येक वर्षब २४ जुलाई सरकार की और से कुँवर साब चैन सिंह जी को गार्ड ऑफ़ ऑनर की सलामी सीहोर व नरसिंहगढ़ में उनकी समाधी पर दी जाती है।
। । देव रूप में होती है पूजा । ।
अमर शहीद कुँवर साब चैन सिंह जी को लोग नरसिंहगढ़ व आस -पास के ग्रामीण क्षेत्र में देव तुल्य मान कर उनकी पूजा अर्चना करते है व शुभ कार्यो जैसे विवाह , जन्म आदि में उनके लोक गीत गाते है उनकी गादी लगाई जाती है व समाधि पर पूजा आरती होती है।
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा"
(पश्चिम बंगाल के स्कूलो में आज भी पदाया जाता है)
गार्ड ऑफ़ ऑनर
। । देव रूप में होती है पूजा । ।
अमर शहीद कुँवर साब चैन सिंह जी को लोग नरसिंहगढ़ व आस -पास के ग्रामीण क्षेत्र में देव तुल्य मान कर उनकी पूजा अर्चना करते है व शुभ कार्यो जैसे विवाह , जन्म आदि में उनके लोक गीत गाते है उनकी गादी लगाई जाती है व समाधि पर पूजा आरती होती है।
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा"
इस लाइन को सिर्फ पढने से मेला नही लगेगा हम सभी को २४ जुलाई के दिन उनकी समाधी पर जाकर उनकी वीरता को याद करना चाहिये,यही सबसे बड़ी श्रधांजलि होगी।
जरा सोंचिये आज के समय में इतनी वीरता कोन दिखा सकता है? जो मिलेट्री के बेस केम्प पर ही जाकर हमला बोले दे... जेसा की वीर योद्धा कुँवर चैनसिंह जी ने अग्रेजो के बेस केम्प सीहोर छावनी पर जाकर किया था।
तो आइये प्रति वर्ष २४ जुलाई को उनको नमन करते है छारबाग नरसिंहगढ़ व सीहोर स्थित उनकी समाधी पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुचे और यह संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये… Source - www.narsinghgarh.com https://www.karnisena.com
कुवरानी राजावत जी के द्वारा बनाया गया मंदिर
कुंवर चैन सिंह जी की छतरी समाधि स्थल नरसिंहगढ़ छारबाग़
कुंवर चैन सिंह जी की छतरी सिहोर छत्री
कुँवर चैन सिंह जी समिति द्वारा प्रतिवर्ष निकलने वाला चल समारोह का रथ २०१७
#History_of_KunwarChainSinghji The 1st and youngest Kshtriya ruler in india who Fight against East INDIA COMPANY in 1824 on His (Military station) called Chavni at SEHORE. Much before the First war of Independence in 1857.
The history of Kunwar Chain Singh Ji of Narsinghgarh State is filled with bravery and courage. Being the youngest Kshatriya ruler in India, he fought against the East India Company in 1824 at his military station called Chavni at Sehore. This occurred much before India's First War of Independence in 1857. Alongside his father-in-law, Shivnath Singh Ji Rajawat Jhilai Muwaliya Jageer, they fought together.
Prince Chain Singh Ji, while his father Rawat Sobhag Singh Ji was ill, took charge of the administration of the state. He was known for his courage, intelligence, and self-respect. He ruled with fairness and justice, gaining the admiration and respect of the people of Narsinghgarh State.
However, Prince Chain Singh Ji's refusal to acknowledge the supremacy of the East India Company angered them. They were waiting for an opportunity to strike back. In a planned murder, a palace official named Vora (Bora) was assassinated. The East India Company held Prince Chain Singh Ji responsible for the murder and demanded that he leave the state and go to Banaras. Refusing to accept the murder charge, Prince Chain Singh Ji defied the Company. This act was seen as rebellion by the East India Company, and a battle ensued in 1824 at Sehore, with Prince Chain Singh Ji's forces against the Company's military. Tragically, Prince Chain Singh Ji fought valiantly but lost his life in the battle at the young age of 24.
To honor his memory, Kunwar Chain Singh Ji's Samadhi is situated near the battlefield. He is known as the "Amar Shaheed of Malwa" and is officially recognized by the government of Madhya Pradesh. People from all communities visit his Samadhi to offer prayers and seek his blessings. Additionally, his father-in-law, Shivnath Singh Ji Jhilai Muvaliya Jageer, was also killed in the battle.
3 Family members with 40 Jageerdar and Himmatkha Bahadurkha also killed in Sehore Battle and their tombs are built near Prince Chain Singh Ji's Samadhi in Sehore and Narsinghgarh Charbagh in the main market.
Every year, the government of Madhya #History_of_KunwarChainSinghji - The 1st and youngest Kshtriya ruler in india who Fight against East INDIA COMPANY in 1824 on His (Military station) called Chavni at SEHORE. Much before the First war of Independence in 1857.
The history of Kunwar Chain Singh Ji of Narsinghgarh State is filled with bravery and courage. Being the youngest Kshatriya ruler in India, he fought against the East India Company in 1824 at his military station called Chavni at Sehore. This occurred much before India's First War of Independence in 1857. Alongside his father-in-law, Shivnath Singh Ji Rajawat, they fought together in Jhilai Muwaliya Jageer, Narsinghgarh State.
Prince Chain Singh Ji, while his father Rawat Sobhag Singh Ji was ill, took charge of the administration of the state. He was known for his courage, intelligence, and self-respect. He ruled with fairness and justice, gaining the admiration and respect of the people of Narsinghgarh State.
However, Prince Chain Singh Ji's refusal to acknowledge the supremacy of the East India Company angered them. They were waiting for an opportunity to strike back. In a planned murder, a palace official named Vora (Bora) was assassinated. The East India Company held Prince Chain Singh Ji responsible for the murder and demanded that he leave the state and go to Banaras. Refusing to accept the murder charge, Prince Chain Singh Ji defied the Company. This act was seen as rebellion by the East India Company, and a battle ensued in 1824 at Sehore, with Prince Chain Singh Ji's forces against the Company's military. Tragically, Prince Chain Singh Ji fought valiantly but lost his life in the battle at the young age of 24.
To honor his memory, Kunwar Chain Singh Ji's Samadhi is situated near the battlefield. He is known as the "Amar Shaheed of Malwa" and is officially recognized by the government of Madhya Pradesh. People from all communities visit his Samadhi to offer prayers and seek his blessings. Additionally, his father-in-law, Shivnath Singh Ji Jhilai Muvaliya Jageer, was also killed in the battle.
3 Family members with 40 Jageerdar and Himmatkha Bahadurkha also killed in Sehore Battle and their tombs are built near Prince Chain Singh Ji's Samadhi in Sehore and Narsinghgarh Charbagh in the main market.
Every year, the government of Madhya Pradesh organizes a program called Shaheed Kunwar Chain Singh Ji Jayanti Samaroh on 24th July. It includes a procession that starts from his Samadhi at Char-Bag Narsinghgarh and Sehore.
In addition, there is a beautiful dam named Kunwar Chain Singh Sagar Dam, recognized by the government of Madhya Pradesh. It is located 30 kilometers from the city and can be reached by road.
Kunwar Chain Singh Ji married Kuwranisa Rajawat Ji from Thikana Mualiya Jageer, which is a royal Thikana of Narsinghgarh State. She belongs to the royal family of Thikana Jhilay Jaipur. After the martyrdom of Kunwar Chain Singh Ji, Kuwrani Rajawati Ji took a lifetime fast without food, only consuming fruits on tree leaves. She also built a temple at Parsuram Sagar called "Kuwranisa Ji Mandir" for prayer.
Rani Lakshmi Bai of Jhansi, upon hearing about Prince Chain Singh Ji's rebellious nature towards the East India Company and his battle at Sehore, approached Narsinghgarh State for help in the First War of Independence in 1857. The then ruler of Narsinghgarh agreed to assist, but unfortunately, before any aid could be provided, Rani Lakshmi Bai was surrounded by Company forces at Gwalior and became a martyr. Tatya Tope, her close confidant and main supporter in the struggle for Indian Independence, arrived in Narsinghgarh after her martyrdom. The ruler of Narsinghgarh secretly harbored him in the thick forest of Kantora, located just behind the Fort Palace, for a significant period.
Source :-
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कुवरानी राजावत जी के द्वारा बनाया गया मंदिर |
कुंवर चैन सिंह जी की छतरी समाधि स्थल नरसिंहगढ़ छारबाग़ |
कुंवर चैन सिंह जी की छतरी सिहोर छत्री |
कुँवर चैन सिंह जी समिति द्वारा प्रतिवर्ष निकलने वाला चल समारोह का रथ २०१७ |
#History_of_KunwarChainSinghji
The 1st and youngest Kshtriya ruler in india who Fight against East INDIA COMPANY in 1824 on His (Military station) called Chavni at SEHORE. Much before the First war of Independence in 1857.
The history of Kunwar Chain Singh Ji of Narsinghgarh State is filled with bravery and courage. Being the youngest Kshatriya ruler in India, he fought against the East India Company in 1824 at his military station called Chavni at Sehore. This occurred much before India's First War of Independence in 1857. Alongside his father-in-law, Shivnath Singh Ji Rajawat Jhilai Muwaliya Jageer, they fought together.
Prince Chain Singh Ji, while his father Rawat Sobhag Singh Ji was ill, took charge of the administration of the state. He was known for his courage, intelligence, and self-respect. He ruled with fairness and justice, gaining the admiration and respect of the people of Narsinghgarh State.
However, Prince Chain Singh Ji's refusal to acknowledge the supremacy of the East India Company angered them. They were waiting for an opportunity to strike back. In a planned murder, a palace official named Vora (Bora) was assassinated. The East India Company held Prince Chain Singh Ji responsible for the murder and demanded that he leave the state and go to Banaras. Refusing to accept the murder charge, Prince Chain Singh Ji defied the Company. This act was seen as rebellion by the East India Company, and a battle ensued in 1824 at Sehore, with Prince Chain Singh Ji's forces against the Company's military. Tragically, Prince Chain Singh Ji fought valiantly but lost his life in the battle at the young age of 24.
To honor his memory, Kunwar Chain Singh Ji's Samadhi is situated near the battlefield. He is known as the "Amar Shaheed of Malwa" and is officially recognized by the government of Madhya Pradesh. People from all communities visit his Samadhi to offer prayers and seek his blessings. Additionally, his father-in-law, Shivnath Singh Ji Jhilai Muvaliya Jageer, was also killed in the battle.
3 Family members with 40 Jageerdar and Himmatkha Bahadurkha also killed in Sehore Battle and their tombs are built near Prince Chain Singh Ji's Samadhi in Sehore and Narsinghgarh Charbagh in the main market.
Every year, the government of Madhya #History_of_KunwarChainSinghji - The 1st and youngest Kshtriya ruler in india who Fight against East INDIA COMPANY in 1824 on His (Military station) called Chavni at SEHORE. Much before the First war of Independence in 1857.
The history of Kunwar Chain Singh Ji of Narsinghgarh State is filled with bravery and courage. Being the youngest Kshatriya ruler in India, he fought against the East India Company in 1824 at his military station called Chavni at Sehore. This occurred much before India's First War of Independence in 1857. Alongside his father-in-law, Shivnath Singh Ji Rajawat, they fought together in Jhilai Muwaliya Jageer, Narsinghgarh State.
Prince Chain Singh Ji, while his father Rawat Sobhag Singh Ji was ill, took charge of the administration of the state. He was known for his courage, intelligence, and self-respect. He ruled with fairness and justice, gaining the admiration and respect of the people of Narsinghgarh State.
However, Prince Chain Singh Ji's refusal to acknowledge the supremacy of the East India Company angered them. They were waiting for an opportunity to strike back. In a planned murder, a palace official named Vora (Bora) was assassinated. The East India Company held Prince Chain Singh Ji responsible for the murder and demanded that he leave the state and go to Banaras. Refusing to accept the murder charge, Prince Chain Singh Ji defied the Company. This act was seen as rebellion by the East India Company, and a battle ensued in 1824 at Sehore, with Prince Chain Singh Ji's forces against the Company's military. Tragically, Prince Chain Singh Ji fought valiantly but lost his life in the battle at the young age of 24.
To honor his memory, Kunwar Chain Singh Ji's Samadhi is situated near the battlefield. He is known as the "Amar Shaheed of Malwa" and is officially recognized by the government of Madhya Pradesh. People from all communities visit his Samadhi to offer prayers and seek his blessings. Additionally, his father-in-law, Shivnath Singh Ji Jhilai Muvaliya Jageer, was also killed in the battle.
3 Family members with 40 Jageerdar and Himmatkha Bahadurkha also killed in Sehore Battle and their tombs are built near Prince Chain Singh Ji's Samadhi in Sehore and Narsinghgarh Charbagh in the main market.
Every year, the government of Madhya Pradesh organizes a program called Shaheed Kunwar Chain Singh Ji Jayanti Samaroh on 24th July. It includes a procession that starts from his Samadhi at Char-Bag Narsinghgarh and Sehore.
In addition, there is a beautiful dam named Kunwar Chain Singh Sagar Dam, recognized by the government of Madhya Pradesh. It is located 30 kilometers from the city and can be reached by road.
Kunwar Chain Singh Ji married Kuwranisa Rajawat Ji from Thikana Mualiya Jageer, which is a royal Thikana of Narsinghgarh State. She belongs to the royal family of Thikana Jhilay Jaipur. After the martyrdom of Kunwar Chain Singh Ji, Kuwrani Rajawati Ji took a lifetime fast without food, only consuming fruits on tree leaves. She also built a temple at Parsuram Sagar called "Kuwranisa Ji Mandir" for prayer.
Rani Lakshmi Bai of Jhansi, upon hearing about Prince Chain Singh Ji's rebellious nature towards the East India Company and his battle at Sehore, approached Narsinghgarh State for help in the First War of Independence in 1857. The then ruler of Narsinghgarh agreed to assist, but unfortunately, before any aid could be provided, Rani Lakshmi Bai was surrounded by Company forces at Gwalior and became a martyr. Tatya Tope, her close confidant and main supporter in the struggle for Indian Independence, arrived in Narsinghgarh after her martyrdom. The ruler of Narsinghgarh secretly harbored him in the thick forest of Kantora, located just behind the Fort Palace, for a significant period.
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Shat shat Naman
ReplyDeleteJay Gurudev. Shat shat Naman.
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